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​उद्देश्य 

अखिल भारतीय साहित्य परिषद् का 1986 में पंजीयन किया गया, जिसका पंजीयन क्रमांक 16836/86 था। इसके अनुसार परिषद् कार्य करती रही। आवश्यकताओं को देखते हुए 1998 में परिषद् का रूपान्तरण न्यास अधिनियम के अन्तर्गत अखिल भारतीय साहित्य परिषद् न्यास के रूप में किया गया। उसका पंजीयन क्रमांक 4141/4 है। न्यास ने साहित्यिक गतिविधियों के संचालन के लिये ‘अखिल भारतीय साहित्य परिषद’ नाम से एक समिति का गठन किया है। यह समिति साहित्य व साहित्यकारों के उन्नयन के लिये कार्य करती है। अखिल भारतीय साहित्य परिषद् के उद्देश्य व लक्ष्य निम्नलिखित हैं - 

उद्देश्य व लक्ष्य

१) साहित्य के माध्यम से देश में एकता का निर्माण।

२) भारत की सभी प्रादेशिक भाषाओं के बीच तालमेल बैठाने के लिये गोष्ठियां, कवि सम्मेलन, साहित्यिक विवेचन, विचार-विमर्श एवं भाषण मालाओं  का आयोजन, कार्यशाला एवं अभ्यास वर्ग आयोजित करना। इसमें युवा लेखकों एवं साहित्यकारों के विशेष आयोजन करना।

३) युवा साहित्यकारों, कवियों, निबन्ध लेखकों, नाटककारों तथा व्यंग्य लेखकों की प्रतियोगिताएं करवाना तथा उनको प्रोत्साहन देना।

४) सभी भाषाओं के साहित्य को दूसरी भाषाओं में अनुदित करना।

५) देश में बौद्धिक वातावरण को स्वस्थ बनाने के लिये सभी भाषाओं में साहित्य निर्माण करवाना, विशेष रूप से युवक एवं नवोदित रचनाकारों को सहायता करना।

६) न्यास का कार्य हिन्दी में चलाया जाता है। भारत की सभी भाषाओं के साहित्य के लिये एक समान लिपि देवनागरी लिपि के लिये प्रयत्न।

७) आधुनिक व प्राचीन साहित्य के शोध के लिये शोध केन्द्रों का निर्माण किया जाना।

८) प्राचीन साहित्यिक ग्रंथों के पठन-पाठन की व्यवस्था की जायेगी ताकि उसके माध्यम से देश की एकता, अखण्डता को पुष्ट करने के लिये   साहित्य का निर्माण किया जा सके।

९) पुस्तकों, शोधग्रंथों, पत्रिकाओं का प्रकाशन करवाया जायेगा। शोध के लिये शोध संस्थान, पुस्तकालयों आदि का निर्माण करना।

१०) साहित्यकारों को पुरस्कृत करना।

११) साहित्यकारों एवं लेखकों की निःशुल्क चिकित्सा व्यवस्था करना और आवश्यकतानुसार चिकित्सालय आदि का निर्माण करना। 

१२)  रोगी तथा विकलांग लोगों को विशेष रूप से साहित्यकारों एवं लेखकों को आर्थिक सहायता प्रदान करना। 

१३) उपरोक्त कार्यों के संचालन के लिये आवश्यकतानुसार न्यास समितियों उपसमितियों का निर्माण करना। उसके लिये नियम बनायेगा। यह समितियां न्यास के निर्णय अनुसार विसर्जित अथवा भंग अथवा पुनःनिर्मित की जा  सकेंगी।

१४) समान उद्देश्यों वाली सम्बन्धन की इच्छुक संस्थाओं के आवेदन पर न्यास उनको सम्बन्धन प्रदान कर सकती है। एतदर्थ न्यास उपनियम बना कर सम्बन्धन की पद्धति और शुल्क आदि निर्धारित करेगी। आवश्यकतानुसार इनमें से सहयोगी न्यासी भी नियुक्त किये जा सकेंगे।

१५) समरूपी न्यासों को प्रोत्साहित करना एवं वित्तीय सहायता प्रदान करना।

१६) इन्हीं लक्ष्यों एवं उद्देश्यों की पूर्ति के लिये सभी प्रकार के साधन जुटाये जायेंगे। विशेष प्रकल्पों के लिये पृथक साधन तथा धन भी एकत्रित किया जा सकेगा।

१७)उपरोक्त सभी साधन का उपयोग न्यास के लिये बिना आर्थिक लाभ एवं हानि के मात्र न्यास के उद्देश्यों की पूर्ति के लिये किया जायेगा। व्यवसायिक लाभ के लिये न्यास के साधनों का उपयोग नहीं किया जा सकेगा।

१८) भारतीय साहित्य और भाषाओं की उन्नति।

१९) भारतीय भाषाओं में परस्पर आदान-प्रदान और सहयोग को बढ़ावा देना।

२०) जनमानस में भारतीय साहित्य के प्रति आस्था तथा अभिरुचि उत्पन्न करना।

२१) उपरोक्त उद्देश्य की पूर्ति के लिये न्यास कभी भी कोई भी नियम बना सकेगा अथवा किसी नियम को स्थगित अथवा निरस्त कर सकेगा।

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